एक सवाल
मेरा एक सवाल सिर्फ उन मसीही भाईयों से है जो ये कहते हैं कि हम पौलुस की बात नहीं मानेंगे, और हम येशु के चेलों की नहीं मानेंगे, और हम पुराने नियम की बात नहीं मानेंगे, सीर्फ येशु की बात मानेंगे...
1. अगर आप पौलुस और येशु के चेलों की नहीं मानेंगे और पुराना नियम अगर आपके लिए पुराना हो चुका तो क्या यह सही नहीं है कि हमें वो सब नये नियम की 90% किताबें जो पौलुस ने लिखी हैं और बाकी की 10% किताबें जो येशु के चेलों ने लिखी हैं, और जो पुराने नियम की सारी किताबें जोकी येशु ने नहीं लिखी और पुरानी हैं और मानी जाने वाली भी नहीं हैं उनको भी निकाल देना चाहिऐ..?
2. अब आपके पास बचा क्या इस लिए आप ऐसा भी नहीं करेंगे... लेकिन करना तो यही चाहीए...?
3. क्योंकि हमारा उद्धार तो सिर्फ विशवास करने से हुआ है, क्रम थोड़ी करना है??? तो क्या इसका मतलब "विश्वास क्रम बिना अधुरा है", यह आयत भी बाईबल से निकाल देनी चाहीए... क्योंकि बाईबल की सभी किताबें जोकि पौलुस, चेलौं और नबीयों ने लिखी हें वो विशवास और विशवास के उपर क्रम करना सिखाती हैं???
4. तो फाईनली क्या करनी चाहीऐ क्योंकि पौलुस और चेले जिन्होंने पवित्र आत्मा का बप्तिस्मा पाया जिन पर आग की जीभें फटती हुयी दिखाइ दी, जिनहोंने 3.5 साल येशु को आमने सामने देखा, जिन्होंने येशु के दिऐ सच के लिऐ ताकी उस सच में कोई मिलावट ना हो, और उस सुसमाचार को फैलाने के लिऐ अपनी जानें तक दे दी और उलटी क्रुस पर चढ़ा दिए गऐ वो सब क्या मुर्ख थे जो 27 में से 23 किताबे और बिना वज्ह लिख ड़ाली जब्कि इनकी क्या ज़रूरत थी 27 में से पहली 4 किताबें पड़कर आपने येशु पर विशवास तो कर ही लिया है ??? और अब आपके पासबान आपको सही बाईबल की शिक्षा दे सकते हैं क्योंकि येशु के चेले अंपढ़ थे और पासबान के पास सैमिनरी की डीगरीयां है, पवित्र आत्मा का बपतिस्मा भी है original वाला, भले ही आग की जीभ नहीं दिखी...
तो क्या करें finally????